खुसूर-फुसूर बडी ही तेजी से सुनवाई…चौथा स्तंभ समाज का आईना होता है

खुसूर-फुसूर

बडी ही तेजी से सुनवाई…

चौथा स्तंभ समाज का आईना होता है। वैसे भी कहा गया है कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। चौथा स्तंभ एवं वर्तमान काल के इस कवि को आधार देता है हमारे जनतंत्र का प्रशासन। आमजन की परवाह रखने वाला प्रशासन जन आहत संभावना के हर मुद्दे को संवेदनशीलता के साथ लेता है और चौथा स्तंभ की आशंका एवं कवि की बात को ध्यान रखते हुए अपने आदेशों के तहत ऐसी सभी घटनाओं को टालने का प्रयास करता है जो संभावित होती है। जिनके कारण जनहानि की संभावना बनती है। एक बार फिर से प्रशासन ने अपनी संवेदनशीलता को उजागर किया है। इन्ही कालमों में आशंकाओं को लेकर 26 एवं 28 नवंबर को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए इस वर्ष भी दैनिक अवंतिका ने चायना डोर के विरूद्ध अपनी कलम चलाते हुए प्रशासन को आगाह किया और उससे समय रहते प्रतिबंध लगाने के लिए पहल की थी। बडी ही तेजी के साथ सुनवाई करते हुए प्रशासन ने  इस मामले में अपना रूख स्पष्ट करते हुए दो दिन में ही पूरे मामले को साफ कर दिया है। प्रशासन ने इस वर्ष भी चायना डोर का उपयोग करने ,बेचने,खरीदने वालों को अपने राडार पर ले लिया है। प्रशासन के इस प्रतिबंध से जनमानस ही नहीं पशु-पक्षी भी लाभांवित होंगे। खूनी डोर जब पक्षियों के परो में उलझती है तो पक्षियों को तडप-तडप कर अपनी जान देने पर मजबूर होना पडता है। पशुओं के पांव में उलझने पर उन्हें नश्तर की तरह घाव देती है और उन घावों से रक्त बहता रहता है को लेकर पशु ऐसे ही घुमते रहते हैं।चायना डोर जब से आई है तब से न जाने कितने आमजन को घाव दे चुकी है। कुछ जानें लें चुकी है। हर वर्ष पतंग के सीजन के आते ही अब उत्साह कम और खौफ की स्थिति ज्यादा सामने रहती है। खुसूर –फुसूर है कि सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन को प्रजातंत्र का चौथ स्तंभ अपनी भूमिका निर्वहन बखुबी करता है, उसकी स्वतंत्रता को बाधित न किया जाए तो उसका लाभ हमेशा समाज को मिलता है। इसीलिए कहा गया है निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय ,बिन पानी बिन साबुना निर्मल करे सुहाए।

 

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